नमस्कार दोस्तों आज की इस पोस्ट में हम बात करेंगे कुषाण वंश के बारे में, यहां हम आपको कुषाण वंश के बारे में पूरा डिटेल से जानकारी देंगे इसलिए प्लीज आज की इस पोस्ट को पूरा अंत तक जरूर पढ़ें.
कुषाण वंश का उदय कैसे हुआ?
सर्वप्रथम कुषाण वंश को तुर्की उद्गम थ्योरी के अनुसार इन्हें तुर्की माना गया, ऐसा इसलिए था क्योंकि तुर्की और कुशान वंश, दोनों के सिक्के तकरीबन एक जैसे ही थे.
इस आधार पर इन्हें तुर्की माना गया. इससे संबंधित एक और तर्क दिया गया की कुषाण और तुर्क के राज्यसभा में पौधों और उपाधियों के काफी समानता थी इसलिए भी इन्हें तुर्कमान आ गया. यह सिर्फ एक पुरानी अवधारणाएं थी.
लेकिन मंगोल उद्गम थ्योरी ने इस बात को पूरी तरह झुठला दिया. मंगोल उद्गम थ्योरी में कुशान वंश के उदय के एक बहुत लंबी कहानी है.
लेकिन हम यहां पर आपको इसके बारे में इसका जो मुख्य स्टोरी है उसके बारे में बताते हैं.
मंगोल उद्गम थ्योरी के अनुसार एक यूची कविगला था जो हींग नु राजा से हारकर अपने पशुओं के लिए नए चारागाह की खोज में पश्चिम की तरफ बढ़ रहा था.
तभी उसने पश्चिम की तरफ बढ़ते समय एक क्षेत्र था तहिया जिसे यूचीयों ने शको से जीत लिया था.
इसके बाद यूची कबीला 5 भागों में बट गया, जिसमें कुषाण सबसे प्रसिद्ध और प्रमुख था. इस तरह से कुषाण वंश का उदय हुआ था.
कुषाण वंश भारत कैसे आए?
जब शुरुआती में यूची कबीला हींग-नु से हारने के बाद अपने नए चारागाह की खोज में पश्चिम की तरफ बढ़ रहे थे.
तब उन्होंने तहिया क्षेत्र में शकों को हराकर वहां कबजा कर लिया था, तू ऐसे में हारे हुए कबीले के राजा का बेटा वहां से भागकर हींग-नू जनजाति से मिल जाता है और हींग नु उसकी मदद भी करता है.
और एक बार फिर यूची कबीला हींग-नु वंश से हारने के बाद एक्सेस घाटी के रास्ते भारत में प्रवेश करता है और इसके साथ ही इस जाति का खानाबदोश जीवन में समाप्त हो जाता है.
पहले से यूची एक खानाबदोश जीवन व्यतीत करते थे लेकिन भारत आने के बाद वे लोग व्यतीत करने लगे.
Also Read: कुषाण वंश का उदय, भारत आगमन और प्रमुख राजा
50 – 60 वर्षों तक इन्होंने छुपकर स्थाई जीवन जिया और उसके बाद इन्होंने अपनी स्थिति मजबूत करने के बाद बैक्ट्रिया और पार्थिया कि राजा को परास्त करके एक शक्तिशाली जनजाति के रूप में उभर कर सामने आया.
कुषाण वंश के प्रथम और प्रमुख़ राजा की जानकारी
कुषाण वंश का सबसे पहला राजा कुजूल कार्डफिसस प्रथम था. जिसने अपना क्षेत्र ईरान से लेकर सिंधु/ झेलम तक फैला रखा था.
यह प्रथम शताब्दी के पूर्वार्ध का राजा था. इसने अपने राज्य काल में तांबे का सिक्का जारी किया जिस पर एक तरफ ईरानी राजा हर्मियस का चित्र था और कुछ यूनानी भाषा में इसके बारे में उल्लेख किया हुआ था.
सिक्के के दूसरी तरफ कुजूल कार्डफिसस प्रथम का चित्र था और साथ में खरोष्ठी भाषा में कुछ लिखा हुआ था.
इसके बाद कुशान वंश का बागडोर कार्डफिसस सेकंड ने संभाला था इसका एक और भी नाम था बीम कार्डफिसस। इसने अपना राज बढ़ाकर पंजाब और गंगा घाटी तक कर दिया था.
एक तरफ कार्डफिसस 2 अपना सम्राज बढ़ाने में लगा हुआ था दूसरी तरफ एक और चीनी राजा अपना साम्राज्य बढ़ाने में लगा हुआ था उसका नाम पांन चाओं था.
वह बहुत ही शक्तिशाली और क्रूर राजा था। जब दोनों राजा अपने साम्राज्य को बढ़ाते हुए आमने-सामने हुए तो कार्डफिसस 2 पांन चाओं के शक्ति और पराक्रम से डर गया.
फिर उसने अपने राज दरबारियों से सलाह मशवरा करके पांन चाओं कि राजकुमारी से शादी का न्योता भेजा जिससे पांन चाओं क्रोधित हो गया और दोनों राजाओं के बीच युद्ध हुआ जिसमें कार्डफिसस 2 को हार का सामना करना पड़ा.
कार्डफिसस 2 अपने कार्यकाल में सर्वप्रथम सोने के सिक्के चलाए थे और बहुत ही सर्वाधिक मात्रा में चलाया था.
तो अगर आप को इस से रिलेटेड किसी भी तरह का सवाल आता है तो आप इसे ध्यान में रखें, कार्डफिसस 2 को बीमा कार्डफिसस भी कहा जाता है इस चीज को आप ध्यान में रखिएगा.