प्राचीन काल से आज तक के सबसे महान राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ, तथा अर्थशास्त्रियों में महान आचार्य चाणक्य की मृत्यु का रहस्य सायद आप नहीं जानते होंगे.
राजनीती एवं कूटनीति में सबसे यदि किसी का नाम सबसे ऊपर आता है तो वह कोई और नहीं बल्कि अतुलनीय बुद्धिमत्ता के स्वामी आचार्य चाणक्य हैं.
मौर्य काल के रत्न आचार्य चाणक्य के कारण ही मौर्य काल को आज तक याद किया जाता है.
चंद्रगुप्त मौर्य को शिक्षा प्रदान करने से राजा बनाने तक पंडित आचार्य चाणक्य ने सबसे अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
अर्थशास्त्र जैसे महान ग्रंथ के इस उत्कृष्ट लेखक के जीवन से जुड़ी अनेकों कहानियां है, परंतु आचार्य चाणक्य की मृत्यु का क्या कारण था.
यह बहुत ही कम लोग जानते हैं, हम आज के पोस्ट में आपको बताएंगे कि आचार्य चाणक्य की मृत्यु कैसे हुई.
इतिहास में यह उल्लेखनीय है कि आचार्य चाणक्य की सूझबूझ से ही मौर्य वंश सबसे शक्तिशाली वंश के रूप में उभर कर सामने आया.
चंद्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य की शिक्षाओं तथा उपदेशों का अनुसरण करके ही राजा का सिंहासन प्राप्त किया, और एक सफल राजा भी बने.
चंद्रगुप्त की मृत्यु के पश्चात आचार्य चाणक्य के पूर्ण प्रयासों तथा शिक्षाओं से चंद्रगुप्त के पुत्र बिंदुसार भी राजा बने.
बिंदुसार भी चाणक्य को अपने पिता के समान बहुत सम्मान देते थे, परंतु राजा बिंदुसार के मंत्री सुबंधु को बिंदुसार का चाणक्य के प्रति सम्मान पसंद नहीं था, और उसके मन में चाणक्य के लिए ईर्ष्या के भावना ने जन्म लिया, सुबंधु बिंदुसार तथा चाणक्य के बीच दूरी बढ़ाना चाहता था.
जिसके लिए उसने अनेकों प्रयास किए, इनमें से एक प्रयास था बिंदुसार के मन में गलतफहमी उत्पन्न करना, उसने बिंदुसार से कहा कि बिंदुसार की माता द्वारा दुर्धरा की मृत्यु का कारण आचार्य चाणक्य हीं हैं.
समय के साथ बिंदुसार तथा चाणक्य के संबंध छीन होने लगे, यह दूरियां इतनी अधिक हो गई कि आचार्य राजा को कुछ भी समझाने में असमर्थ थे.
आचार्य चाणक्य ने महल छोड़कर जाने का निर्णय लिया उनकी उपस्थिति में महल में रह रही एक दाई ने जिसे राजा बिंदुसार की मां की देखभाल की थी, राजा को उनकी मां की मृत्यु का कारण बताया, उसने बताया कि आचार्य चाणक्य राजा चंद्रगुप्त के भोजन में प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा विश्व मिलाते थे, ताकि राजा विश ग्रहण करने के आदी हो जाए, और कोई उन्हें विश देकर उनका साम्राज्य ना छीन ले। और जब बिंदुसार का जन्म होने वाला था, तब वही भोजन एक बार रानी दुधारा ने भी ग्रहण किया था, दरअसल आचार्य चाणक्य ने दुर्धारा के गर्भ से बिंदुसार को निकाल लिया था और होने के कारण मौर्य वंश का अस्तित्व कायम रहा.
महल छोड़ने के पश्चात चाणक्य ने पूरी उम्र उपवास करने का निश्चय किया, और अंत में प्राण त्याग दिए.
आचार्य चाणक्य जैसे महानतम व्यक्ति की मृत्यु भारतवर्ष के इतिहास का एक अत्यंत दुखद पन्ना है।